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नोटबंदी की मार से इनकी जिंदगी हो गई दुश्वार

Desk

नोटबंदी के नुकसान-फायदे पर चल रही बहस के बीच समाज का एक तबका ऐसा भी है जो इस फैसले से सिर्फ और सिर्फ समस्या ही झेल रहा है। यह वो तबका है जिसका वजूद ही छोटे नोटों पर टिका है। दिहाड़ी करने वाले मजदूर, रेहड़ी-ठेली या फुटपाथ पर सामान बेचने वाले छोटे व्यापारी हों या गंगा किनारे 10 रुपये में मछली का दाने बेचने वाले लोग, इन सभी का काम-धंधा चौपट हो गयनोटबंदी पर चल रही बहस के बीच ‘अमर उजाला’ की टीम ने यह जानने की कोशिश की कि इन लोगों के जीवन पर क्या असर पड़ा है। हालात बेहद चिंताजनक हैं। असर ऐसा मानो देश मंदी की चपेट में आ गया है। तमाम दुश्वारियों के बावजूद कोई भी नोटबंदी का विरोध नहीं कर रहा है, लेकिन यह उम्मीद जरूर है कि हालात जल्द सुधरेंगे। 
मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट
500 और 1000 के नोटों पर लगी पाबंदी ने दिहाड़ी-मजदूरी करने वालों का जीवन और मुश्किल कर दिया है। लालपुल पर रोजाना काम की तलाश में मजूदरों का मेला लगता है। पहले तो मजदूरों की इतनी डिमांड थी कि आधे घंटे में ही यहां भीड़ खत्म हो जाती थी, लेकिन अब आधे मजदूरों को भी काम नहीं मिल पाता। सुबह 10 बजे काम के इंतजार में लालपुल पर बैठे जगदीश प्रसाद और ऋषिपाल ने बताया कि नोटबंदी से रोजी-रोटी पर संकट आ गया है। किसी दिन काम मिल जाता है और कभी खाली हाथ घर वापस जाना पड़ता है।
आलम ने बताया कि मजूदर के लिए रोज कुआं खोदो और रोज पानी पीओ वाली स्थिति होती है। एक दिन काम न मिले तो यह सोचना पड़ता है कि आज चूल्हा कैसे जलेगा। नोटबंदी के कारण मुसीबत में फंसे मजदूर एक दूसरे का सहारा बन रहे हैं। मुसीबत के पलों में मजदूरों ने एक-दूसरे की मदद का संकल्प लिया। ऐसे मजदूर जिन्हें काम मिल जाता है वे दूसरे साथियों की मदद करते हैं। सुरेंद्र बताते हैं कि जब 500 और 1000 के नोट बंद हुए तो लगा कि घर में अब चूल्हा कैसे जलेगा। ऐसे में सलमान ने मदद की। इसके बाद हम सभी ने मिलकर यह फैसला लिया कि जब तक हालात सामान्य नहीं होते, हम एक-दूसरे की मदद करेंगे।नोटबंदी से थोक व्यापार भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। हनुमान चौक पर कारोबार करने वाले आढ़त व्यापारी विनोद गोयल ने बताया कि बाजार करीब 60 प्रतिशत तक गिर गया है। लेकिन, अब हालात कुछ सुधर रहे हैं। हम छोटे व्यापारियों को क्रेडिट पर सामान दे रहे हैं। आढ़त व्यापारी अजय गुप्ता ने बताया कि बिक्री काफी घट गई है। लेकिन उम्मीद है कि नए नोट बाजार में आने के बाद हालात कुछ सुधरेंगे।
छोटे कारोबारियों का धंधा हुआ मंदा
नोटबंदी की सबसे बड़ी मार रेहड़ी-ठेली पर सामान बेचने वालों पर पड़ी है। दरअसल इनके पास जो भी सामान होता है उसकी कीमत 100 रुपये से कम होती है। चूंकि, छोटे नोटों की किल्लत है इसलिए इनकी बिक्री ठप हो गई है। पलटन बाजार में घूम-घूमकर टोपियां बेचने वाले महताब ने बताया कि पहले तो रोजाना 400 से 500 रुपये की बिक्री हो जाती थी, लेकिन अब 100 रुपये भी मिलने मुश्किल हो गए हैं। पॉपकॉर्न विक्रेता सलीम ने कहा कि रोज सुबह घर से निकलते वक्त यही दुआ करता हूं कि आज कुछ कमाई हो जाए। यही हाल रहा तो परिवार चलाना मुश्किल हो जाएगा। 

मछलियों का ‘दाना-पानी’ भी बंद
नोटबंदी के कारण ऋषिकेश में गंगा किनारे मछली की गोलियां बेचकर परिवार पालने वालों के सामने संकट खड़ा हो गया है। यह लोग गोलियां बनाकर गंगा किनारे पहुंचते तो हैं लेकिन छोटे नोटों की किल्लत के कारण काम पूरी तरह चौपट हो गया है। राजेश्वरी देवी का कहना है कि आठ नवंबर से पहले हम लोग प्रतिदिन 200 से लेकर 300 रुपये की गोलियां बेच लेते थे। लेकिन अब 50 रुपये की बिक्री बमुश्किल हो पा रही है। वहीं, शकुंतला देवी कहती हैं कि नोटबंदी के बाद पैदा हुए हालात में परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। यही हाल रहा तो फिर भगवान ही मालिक है।
80 फीसदी कम हुई बिक्री
शीशपाल अग्रवाल की डोईवाला चौक पर किराने की बहुत पुरानी दुकान है। 500 और 1000 रुपये के नोटों पर पाबंदी से पहले उन्हें फुर्सत नहीं मिलती थी, लेकिन अब वे ग्राहकों के इंतजार में बैठे रहते हैं। शीशपाल कहते हैं कि डोईवाला जैसे कस्बे में अभी स्वैप मशीन से खरीदारी करने का चलन नहीं है। नोटबंदी के बाद उनकी बिक्री करीब 80 प्रतिशत गिर गई है। जो लोग महीने भर का राशन ले जाते थे वे अब 100-200 रुपये का सामान ही ले जा रहे हैं। डोईवाला क्षेत्र के हंसूवाला गांव में जरनल मर्चेन्ट की दुकान चलाने वाले सत्य प्रकाश जायसवाल कहते हैं कि उनका कारोबार बिल्कुल चौपट हो गया है। 

 

Report :- Desk
Posted Date :- 24/11/2016