
शिया समुदाय की श्रद्धा और आस्था की स्थली दरगाह-ए-आलिया नजफ-ए-हिंद जोगीरम्पुरी में हर साल हजरत इमाम हुसैन की याद में चार रोजा सालाना मजलिसें आयोजित
नजीबाबाद। शिया समुदाय की श्रद्धा और आस्था की स्थली दरगाह-ए-आलिया नजफ-ए-हिंद जोगीरम्पुरी में हर साल हजरत इमाम हुसैन की याद में चार रोजा सालाना मजलिसें आयोजित की जाती हैं।जोगीरम्पुरी दरगाह अकीदे का वो पाकीजा जगह है जहां सालाना मजलिसों के दौरान शिया जायरीन आकर इबादत कर मन्नते मांगते हैं। कोरोना काल के दो वर्ष बाद 26 मई आज से चार रोजा मजलिसें शुरू हो रही हैं। मान्यता है कि हजरत अली घुड़सवारी दस्ते के साथ यहां पहुंचे थे। जोगीरम्पुरी के अकीदे की जगह बनने के बारे में कहा जाता है कि मुगल बादशाह शाहजहां के दरबार में अलाउद्दीन बुखारी वफादार दीवान थे। उनके इंतकाल के बाद उनके साहबजादे सय्यद राजू जोगीरम्पुरी पहुंचे। उन्हें आलमगीर से खतरा था। वह या अली अदरिकनी वजीफा करते और मौला अली से अपनी हिफाजत की दुआ मांगते और दिन में जंगल में छिपे रहते थे। एक दिन देर से आंख खुलने पर वे घर पर बनी मचान पर ही सो गए। संयोग से उसी दिन एक घुड़सवारी दस्ता जंगल आया। दस्ते का नेतृत्व कर रहे नौजवान के चेहरे पर तेज था हाथ में अलम था बाकी घुड़सवार नकाबपोश थे।घुड़सवारी दस्ते के मुखिया ने घास काटकर लौट रहे नाबीना (आंखों से अंधे) ब्राह्मण से सय्यद राजू के बारे में जानकारी की और कहा कि उन्हें बुलाकर लाओ। उनसे कहना जिन्हें तुम रात-दिन याद करते हो वो तुमसे मिलना चाहते हैं। उन्होंने नाबीना से पलभर को आंख बंद करने को कहा। आंख खोलते ही नाबीना की आंखों में रोशनी लौट आई। खुशी-खुशी वह सय्यद राजू के पास पहुंचा और पूरा माजरा बताया। सय्यद राजू जैसे ही घुड़सवारी दस्ते से मिलने पहुंचे तो वहां पर घोड़ों के मुंह के झाग और पैरों के निशान थे। मायूस सय्यद राजू ने निशानों को महफूज कर लिया। कुछ दिनों बाद सय्यद राजू को ख्वाब में दरगाह तामीर करने का हुक्म हुआ। दरगाह तामीर कराने में पानी की किल्लत पर करिश्माई पानी का चश्मा फूट पड़ा। बताते हैं कि इस चश्मे का पानी आज भी बरकरार है। यकीन किया जाता है कि चश्मे का पानी पीने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं, पेट की बीमारियों और ऊपरी हवाओं से भी निजात मिलती हैl
